शबदकोश
पगडडं ी - छोटी रासता
दातौन - पेड की डाली का वह टुकट िजससे दात मंजन करता है ।
हिसया - അരിവാള
खरौचे - िनशान
बेबाक - िनरतर
िधगगी - खुशी
छीलना - िछलका उतारना
िबचकाना - कोध का भाव पकट करना
Wednesday, December 8, 2010
कहानी
रोज की तरह शाम को एक खास समय पर खोतो के िकनार े से सटी पगडंडी पर
साइिकल चलाते हुए घेडा गाँव के पौढ जमीनदार अचानक साइिकल को पगडंडी के
िकनारे खडे बबुल के पेड से िटकाकर खेत के िकनारे से बबुल की दातौन को छीलती
हुई जवान लचछो के पास आकर खडे हो गए। खूबसूरत लचछो पर उनकी िनगाह
बहूत पहले से ही थी । आज एकांत पाकर उनके भीतर का भेिडया जाग उठा ।वे
आँखो मे नाखून लेकर उसके पास आए और लचछो की की उनत वक पर हाथ िफराते
हुए बोले - “ अरे , तेरी अंिगया तो बीच से बहुत िचर गई है, इसे सी लेना या कहे तो
कल तेर े िलए नई अिं गया ला दँु"। लचछो ने अपने सीने पर नजर डाली , वाकई
उसकी अंिगया फटी हुई थी । लचछो ने उसे िछपाते हुए कहा - " चाचा सुबह से शाम
तक बाजार मे बेचने केिलए बबुल की दांतौन जो िछलती रहती हुँ तो िकसी काँटे की
करतूत रही होगी , िजससे अंिगया फट गई "। ऎसा कहकर वह लापरवाही से िफर
अपने तेज हिसये से दांतौन छीलने लगी ।
अगले िदन गने के खेत मे जमीनदार की लास िमली । लचछो पुिलस की
कसटडी मे थी । उसका बदन तार-तार था । चेहरे पर दांतो के िनशान , पूरे बदन पर
नाखून की खरौचे , िबखरे हुए बाल , लहुलुहान शरीर , तार- तार हुए कपडे - ये सब
चुप रहकर सारी कहानी कह रही थी । पुिलस पूछताछ कर रही थी । लचछो बोलती
जा रही थी - “ साहब बबुल को छीलकर दांतौन बनाते है हम । बबुले के एक काँटे ने
तो हमारी अंिगया ही फडी थी ,यह पापी हमारे अंग को तार-तार कर देना चाहता था
"। िफर अपने गालो और अनय िहससो पर जमीनदार के नाखून और दांतो के िनशान
िदखाकर बोली - " हरामदादा मुझे ही दांतौन समझ रखा था । िफर मँहु िबचकाकर
बोली - हम तो बबुल की दांतौन बनाते है , हम ने बबुल की नाई छील िदया सुनकर
साले को "।
लचछो के बेबाक बात सुनकर भीड मे खडे लोगो की िधगगी बंद हो गई ।
रोज की तरह शाम को एक खास समय पर खोतो के िकनार े से सटी पगडंडी पर
साइिकल चलाते हुए घेडा गाँव के पौढ जमीनदार अचानक साइिकल को पगडंडी के
िकनारे खडे बबुल के पेड से िटकाकर खेत के िकनारे से बबुल की दातौन को छीलती
हुई जवान लचछो के पास आकर खडे हो गए। खूबसूरत लचछो पर उनकी िनगाह
बहूत पहले से ही थी । आज एकांत पाकर उनके भीतर का भेिडया जाग उठा ।वे
आँखो मे नाखून लेकर उसके पास आए और लचछो की की उनत वक पर हाथ िफराते
हुए बोले - “ अरे , तेरी अंिगया तो बीच से बहुत िचर गई है, इसे सी लेना या कहे तो
कल तेर े िलए नई अिं गया ला दँु"। लचछो ने अपने सीने पर नजर डाली , वाकई
उसकी अंिगया फटी हुई थी । लचछो ने उसे िछपाते हुए कहा - " चाचा सुबह से शाम
तक बाजार मे बेचने केिलए बबुल की दांतौन जो िछलती रहती हुँ तो िकसी काँटे की
करतूत रही होगी , िजससे अंिगया फट गई "। ऎसा कहकर वह लापरवाही से िफर
अपने तेज हिसये से दांतौन छीलने लगी ।
अगले िदन गने के खेत मे जमीनदार की लास िमली । लचछो पुिलस की
कसटडी मे थी । उसका बदन तार-तार था । चेहरे पर दांतो के िनशान , पूरे बदन पर
नाखून की खरौचे , िबखरे हुए बाल , लहुलुहान शरीर , तार- तार हुए कपडे - ये सब
चुप रहकर सारी कहानी कह रही थी । पुिलस पूछताछ कर रही थी । लचछो बोलती
जा रही थी - “ साहब बबुल को छीलकर दांतौन बनाते है हम । बबुले के एक काँटे ने
तो हमारी अंिगया ही फडी थी ,यह पापी हमारे अंग को तार-तार कर देना चाहता था
"। िफर अपने गालो और अनय िहससो पर जमीनदार के नाखून और दांतो के िनशान
िदखाकर बोली - " हरामदादा मुझे ही दांतौन समझ रखा था । िफर मँहु िबचकाकर
बोली - हम तो बबुल की दांतौन बनाते है , हम ने बबुल की नाई छील िदया सुनकर
साले को "।
लचछो के बेबाक बात सुनकर भीड मे खडे लोगो की िधगगी बंद हो गई ।
अपने रोगगसत साथी की मृतयु ने शरत् के मन मे कैसा
पभाव डाला होगा ?
उनके िवचारो को डायरी के रप मे िलिखए ....
7 जून 2010
वह िदन मै भूल न सकता । दफतर के बाबुओं के मेस मे हम
तीनो एक ही कमरे मे रहते थे। रोगगसथ अजनबी को भी दवा
खरीद देने मे उसे संकोच नहीं होता था।अचानक एक िदन
हम भी रोगगसत हो गये। हम दोनो एक दूसरे के िसर पर आइस
बैग रखते रहे बहूत देर तक। लेिकन उसकी अवसथा िनरतं र
िबगडती आ रही थी। एक बार होश आने पर उसने मुझसे अपने
टंक मे रखे रपये पती को भेज देने के बारे मे कहा।शायद
उसे मालुम हुआ िक अपना अंत िनकट आया हो।छटपटा रहनेवाले
उसका मुख मन से नहीं ओझल होता।िजस िदन उसकी मृतयु
हुई ,उस रात मुझे नींद नहीं आई। दूसरे िदन शवदाह की
वयवसथा करने मे संधया हो गई, तभी मै िबलकुल थक गया था।
पभाव डाला होगा ?
उनके िवचारो को डायरी के रप मे िलिखए ....
7 जून 2010
वह िदन मै भूल न सकता । दफतर के बाबुओं के मेस मे हम
तीनो एक ही कमरे मे रहते थे। रोगगसथ अजनबी को भी दवा
खरीद देने मे उसे संकोच नहीं होता था।अचानक एक िदन
हम भी रोगगसत हो गये। हम दोनो एक दूसरे के िसर पर आइस
बैग रखते रहे बहूत देर तक। लेिकन उसकी अवसथा िनरतं र
िबगडती आ रही थी। एक बार होश आने पर उसने मुझसे अपने
टंक मे रखे रपये पती को भेज देने के बारे मे कहा।शायद
उसे मालुम हुआ िक अपना अंत िनकट आया हो।छटपटा रहनेवाले
उसका मुख मन से नहीं ओझल होता।िजस िदन उसकी मृतयु
हुई ,उस रात मुझे नींद नहीं आई। दूसरे िदन शवदाह की
वयवसथा करने मे संधया हो गई, तभी मै िबलकुल थक गया था।
1
वे घृणा करते है हमसे
हमारे कालेपन से
हँसते है ,वयगं य करते है हम पर
हमारे अनगढपन पर कसते है फिबतया
मजाक उडाते है, हमारी भाषा का
हमारे चाल-चलन रीित-िरवाज
कुछ भी पसंद नहीं उनहे
पसंद नहीं है, हमारा पहनावा-ओढावा
जगं ली ,असभय ,िपछडा कह
िहकारत से देखते है हमे
और अपने को सभय शेष समझ
नकारते है हमारी चीजो को
० किव तथा किवता का नाम िलिखए।
० किवता मे वे और हम िकनका पितिनिधतव करते है ?
० वे िकस पकार फिबतया कसते है ?
० वे िकसका मजाक उडाते है ?
० वे हमारी चीजो को कया कहकर नकारते है ?
2
वे नहीं चाहते , सीखना
हमारे बीच रहते , हमारी भाषा
चाहते है, उनकी भाषा , सीखे हम
और उनहीं की भाषा मे बात करे उनसे
० 'उनहे 'सहज गाह नहीं होता - िकनको ? कया ?
० " उनके घरो मे हमारा पवेश विजरत है " िकसका पवेश
विजरत है ?
० ' वे ' कया -कया नहीं चाहते है ?
० वे कया चाहते है ?
वे घृणा करते है हमसे
हमारे कालेपन से
हँसते है ,वयगं य करते है हम पर
हमारे अनगढपन पर कसते है फिबतया
मजाक उडाते है, हमारी भाषा का
हमारे चाल-चलन रीित-िरवाज
कुछ भी पसंद नहीं उनहे
पसंद नहीं है, हमारा पहनावा-ओढावा
जगं ली ,असभय ,िपछडा कह
िहकारत से देखते है हमे
और अपने को सभय शेष समझ
नकारते है हमारी चीजो को
० किव तथा किवता का नाम िलिखए।
० किवता मे वे और हम िकनका पितिनिधतव करते है ?
० वे िकस पकार फिबतया कसते है ?
० वे िकसका मजाक उडाते है ?
० वे हमारी चीजो को कया कहकर नकारते है ?
2
वे नहीं चाहते , सीखना
हमारे बीच रहते , हमारी भाषा
चाहते है, उनकी भाषा , सीखे हम
और उनहीं की भाषा मे बात करे उनसे
० 'उनहे 'सहज गाह नहीं होता - िकनको ? कया ?
० " उनके घरो मे हमारा पवेश विजरत है " िकसका पवेश
विजरत है ?
० ' वे ' कया -कया नहीं चाहते है ?
० वे कया चाहते है ?
Wednesday, November 10, 2010
Wednesday, October 13, 2010
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