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Wednesday, December 8, 2010

अपने रोगगसत साथी की मृतयु ने शरत् के मन मे कैसा
पभाव डाला होगा ?
उनके िवचारो को डायरी के रप मे िलिखए ....
7 जून 2010
वह िदन मै भूल न सकता । दफतर के बाबुओं के मेस मे हम
तीनो एक ही कमरे मे रहते थे। रोगगसथ अजनबी को भी दवा
खरीद देने मे उसे संकोच नहीं होता था।अचानक एक िदन
हम भी रोगगसत हो गये। हम दोनो एक दूसरे के िसर पर आइस
बैग रखते रहे बहूत देर तक। लेिकन उसकी अवसथा िनरतं र
िबगडती आ रही थी। एक बार होश आने पर उसने मुझसे अपने
टंक मे रखे रपये पती को भेज देने के बारे मे कहा।शायद
उसे मालुम हुआ िक अपना अंत िनकट आया हो।छटपटा रहनेवाले
उसका मुख मन से नहीं ओझल होता।िजस िदन उसकी मृतयु
हुई ,उस रात मुझे नींद नहीं आई। दूसरे िदन शवदाह की
वयवसथा करने मे संधया हो गई, तभी मै िबलकुल थक गया था।

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